अक्रम विज्ञान, एक ऐसा आध्यात्मिक विज्ञान है जो व्यवहार में उपयोगी है और मोक्ष प्राप्ति के लिए एक ‘शार्टकट’ रास्ता है।
अधिक पढ़ें20 मई |
19 मई | to | 21 मई |
दादा भगवान फाउन्डेशन प्रचार करता हैं, अक्रम विज्ञान के आध्यात्मिक विज्ञान का – आत्मसाक्षात्कार के विज्ञान का। जो परम पूज्य दादा भगवान द्वारा बताया गया है।
अधिक पढ़ेंअहमदाबाद से २० की.मी. की दूरी पर सीमंधर सिटी, एक आध्यात्मिक प्रगति की जगह है| जो "एक स्वच्छ, हरा और पवित्र शहर" जाना जाता है|
अधिक पढ़ेंअक्रम विज्ञानी, परम पूज्य दादा भगवान, द्वारा प्रेरित एक अनोखा निष्पक्षपाति त्रिमंदिर।
अधिक पढ़ेंदादाश्री : हम तो इतना जानते हैं कि झगड़ने के बाद वाइफ के साथ व्यवहार ही नहीं रखना हो तो अलग बात है। परन्तु वापिस बोलना है तो फिर बीच की सारी ही भाषा गलत है। हमें तो यह लक्ष्य में ही होता है कि दो घंटे बाद वापिस बोलना है, इसलिए उसके साथ कच-कच नहीं करें। यह तो, आपको अभिप्राय वापिस बदलना नहीं हो तो अलग बात है। अभिप्राय अपना बदले नहीं तो अपना किया हुआ खरा है। वापिस यदि वाइफ के साथ बैठनेवाले ही न हों तो झगड़े वह ठीक है। पर यह तो कल वापिस साथ में बैठकर भोजन करनेवाले हो, तो फिर कल नाटक किया उसका क्या? वह विचार करना पड़ेगा न? ये लोग तिल सेक-सेककर बोते हैं, इसलिए सारी मेहनत बेकार जाती है। झगड़े हो रहे हों तब लक्ष्य में होना चाहिए कि ये कर्म नाच नचा रहे हैं। फिर उस 'नाच' का ज्ञानपूर्वक हल लाना चाहिए।
प्रश्नकर्ता : दादा, यह तो झगड़ा करनेवाले दोनों व्यक्तियों को समझना चाहिए न?
दादाश्री : ना, यह तो 'सब-सबकी सँभालो।' हम लोग सुधरें तो सामनेलावा सुधरता है। यह तो विचारणा है, और एक घड़ी बाद में साथ बैठना है तो कलह किसलिए? शादी की है तो कलह किसलिए? आप बीते कल को भुला चुके हों और हमें तो सारी की सारी वस्तु 'ज्ञान' में हाज़िर होती हैं। जब कि यह तो सद्विचारणा है और 'ज्ञान' न हो उसे भी काम आए। यह अज्ञान से मानता है कि वह चढ़ बैठेगी। कोई हमें पूछें तो हम कहें कि तू भी लट्टू और वह भी लट्टू तो किस तरह चढ़ बैठेगी? वह कोई उसके बस में है? वह तो 'व्यवस्थित' के बस में है और वाइफ चढ़कर कहाँ ऊपर बैठनेवाली है? आप ज़रा झुक जाओ तो उस बिचारी के मन में भी अरमान पूरा होगा कि अब पति मेरे काबू में है। यानी संतोष हो उसे।
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