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टकराव टालो – क्या इसका अर्थ सहन करना है?

टकराव टालने के प्रयत्न में, बहुत से लोग भूल करते हैं और टालने के सही अर्थ को सहन करना समझ लेते हैं। सहन करना और टकराव टालना दो बहुत अलग चीज़े है। टकराव टालने से हम घर्षण उत्पन्न करने से बचते हैं और जिससे हमारा भविष्य प्रभावित नही होता है ; जबकि, सहनशीलता तो केवल हमारे धैर्य का परीक्षण लेती हैं।

कई बार आप अपने आप को ऐसी परिस्थितियों से घिरा पाते हैं जहाँ आप हर किसी को संतुष्ट करने में और टकराव टालने में असमर्थ होते हैं।। इसका यह भी अर्थ नहीं है कि हम सहन करते रहें। परम पूज्य दादा भगवान जी कहते है ,”सहन करना और ‘स्प्रिंग’ को दबाना, वे दोनों एक से हैं। ‘दबाई हुई स्प्रिंग कितने दिन रहेगी?’ इसलिए सहन करना तो सीखना ही मत।" सोल्यूशन लाना सीखो। केवल समाधान मिलने से ही टकराव टाल सकते हैं।

जहाँ कहीं भी आपको लगता है कि किसी दूसरे के कारण आपको सहन करना पड़ रहा है, तो क्या आप जानते हैं कि इसके पीछे का सही कारण क्या है, वह सामने वाला व्यक्ति आपके साथ ही ऐसा व्यवहार क्यों कर रहा है?

यह वास्तव में अपने ही कर्मों का हिसाब है। हाँ, आपको अपने पूर्व कर्मों के हिसाब की जानकारी नही है , जिसके कारण आपको ऐसा लगता है कि सामने वाला व्यक्ति जो आपको दे रहा है, उसके आप योग्य नही है और आप परेशान हो जाते हो कि “वह मेरे साथ ऐसा क्यों कर रहा है?” ओह, वह केवल वही लौटा रहा है जो आपने उसे पूर्व जन्म में दिया था। अगर हम अपने कर्मों के हिसाब से देखे, तो इस जन्म में हमारे साथ घटने वाली प्रत्येक घटना हमारे कर्मों के बही खाते से बाहर की नही है बल्कि हमारे हिसाब की ही है।

आपके साथ जो कुछ भी हो रहा है वह केवल आपके पिछले कर्मों का हिसाब है। वह कर्म आज फल देने के लिए तैयार हैं और आपका हिसाब चुकता कर रहे हैं; इसलिए आपको तो खुश होना चाहिए कि अब आप इन कर्मों से मुक्त हो रहे हैं। और वह व्यक्ति तो इस प्रक्रिया में निमित्त मात्र है, इसलिए आपको तो उसका आभारी होना चाहिए कि उसने आपके पूर्व कर्मों को चुकाने में आपकी मदद की। यही समझ ही आपको समाधान देगी। अब बताइये ,क्या हमे कुछ सहन करने की आवश्यकता है ?

सहन करने के विपरीत परिणाम

  • जब आप किसी समस्या का समाधान नहीं करते और उसे कई दिनों तक सहन करते है तब दबी हुई स्प्रिंग एक दिन उछलती है, जिससे केवल आप ही क्रोधित नहीं होते बल्कि आप अपने आसपास वालों को भी परेशान करते है।
  • जब आप सहन कर रहे होते हैं, तो आप भीतर से गहरे दु:ख का अनुभव करते हैं और हालांकि आप शारीरिक रूप से टकराव नहीं करते है, लेकिन आप सामने वाले व्यक्ति के लिए बैर का भाव उत्पन्न कर नए कर्म को बांधते है ,जिसका बदला आप अगले जन्म में लेंगे। हम ऐसा नही करना चाहेंगे न, हैना? इसलिए “टकराव टालिए, लेकिन सहन करना सही तरीका नही है”|
  • सामने वाले को सहन करके हम उस परिस्थिति में उस व्यक्ति के लिए नकरात्मक अभिप्राय अपने मन में उत्पन्न कर लेते हैं। भविष्य में जब भी आप उस व्यक्ति से बातचीत करेंगें तो यह अभिप्राय आपके मन में स्वतः ही उत्पन्न होकर आपकी आपसी बातचीत को प्रभावित करेंगे, इससे आपका उस व्यक्ति के साथ संबंध हमेशा कटु रहेगा।
  • इन्फिरियर प्रकृति वाले लोग वे दूसरे लोगों की तरह न तो प्रतिक्रिया दे पाते हैं और और ना ही उनकी तरह टकराव कर पाते हैं। वे हमेशा अंदर ही अंदर घुटते रहते हैं क्योंकि वे अपनी निराशाओं से मुक्त नही हो पाते हैं और इसी कारण से गुस्से मे रहते है। यह सहन करने का उनका तरीका है। जब वे अब और सहन नही कर पाते हैं और जब उनकी सहनशीलता चरम सीमा तक पहुँच जाती है तो वे उदास हो जाते हैं। इस उदासीनता के परिणामस्वरूप मानसिक और समय के साथ-साथ शारीरिक बीमारी भी होती है। अंत में, सबसे बड़ा नुकसान उसी व्यक्ति का होता है जो सहन करता है।
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