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प्रेम स्वरूप कैसे बन सकते हैं?

असल में जगत् जैसा है वैसा वह जाने, फिर अनुभव करे तो उसे प्रेमस्वरूप ही होगा। जगत् 'जैसा है वैसा' क्या है? कि कोई जीव किंचित् मात्र दोषी नहीं, निर्दोष ही है जीव मात्र। कोई दोषी दिखता है वह भ्रांति से ही दिखता है।

अच्छे दिखते हैं, वह भी भ्रांति और दोषी दिखते हैं, वह भी भ्रांति। दोनों अटेचमेन्ट-डिटेचमेन्ट हैं। यानी कोई दोषी असल में है ही नहीं और दोषी दिखता है इसलिए प्रेम आता ही नहीं। इसलिए जगत् के साथ जब प्रेम होगा, जब निर्दोष दिखेगा, तब प्रेम उत्पन्न होगा। यह मेरा-तेरा, वह कब तक लगता है? कि जब तक दूसरे को अलग मानते हैं तब तक। उसके साथ भेद है तब तक, यह मेरा लगता है उससे। तो इस अटेचमेन्टवाले को मेरा मानते हैं और डिटेचमेन्टवाले को पराया मानते हैं, वह प्रेमस्वरूप किसी के साथ रहता नहीं।

इसलिए यह प्रेम वह परमात्मा गुण है, इसलिए हमें वहाँ पर खुद को वहाँ सारा ही दुख बिसर जाता है उस प्रेम से। मतलब प्रेम से  बंधा यानी फिर दूसरा कुछ बंधने को रहा नहीं।

प्रेम कब उत्पन्न होता है? जो अभी तक भूलें हुई हों उनकी मा़फी माँग लें, तब प्रेम उत्पन्न होता है।

उनका दोष एक भी नहीं हुआ, पर मुझे दिखा इसलिए मेरा दोष था।

जिसके साथ प्रेमस्वरूप होना हो न, वहाँ इस तरह करना। तब आपको प्रेम उत्पन्न होगा। करना है या नहीं करना प्रेम?

प्रश्नकर्ता : हाँ दादा।

दादाश्री : हमारा यही तरीका होता है सारा। हम जिस तरह तर गए हैं उसी तरीके से तारते हैं सभी को।

आप प्रेम उत्पन्न करोगे न?! प्रेमस्वरूप हो जाएँ तब सामनेवाले को अभेदता रहती है। सब हमारे साथ उस तरह से अभेद हो गए हैं। यह रीति खुली कर डाली।

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