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भविष्य की चिंता क्यों नहीं करनी चाहिए?

भविष्य की चिंता बिगाड़े वर्तमान;

दूर के पहाड़ देखने के बजाय नज़दीक की ठोकर से बचो।

प्रश्नकर्ता: मेरी तीन बेटियाँ हैं, मुझे उनकी चिंता रहती है। उनके भविष्य का क्या?

दादाश्री: हम भविष्य के बारे में सोचे उससे अच्छा आज की सेफसाइड (सलामती) करना, प्रतिदिन सेफसाइड करना अच्छा। आगे के विचार जो करते हो न, वे विचार किसी भी तरह ‘हेल्पिंग’ (सहायक) नहीं हैं, बल्कि नुकसानदायक हैं। उसके बजाय हम प्रतिदिन सेफसाइड करते रहें यही सब से बड़ा इलाज है। नहीं समझे आप?

प्रश्नकर्ता: हाँ, समझ में आया।

दादाश्री: आगे के बारे में सोचने का कोई अर्थ नहीं है। वह सत्ता में ही नहीं है। एक पल में तो इंसान मर जाता है। उस पर भी सोचने की ज़रूरत नहीं है। उसमें तेरी मेहनत व्यर्थ जाएगी। चिंताएँ होंगी, उपाधियाँ होंगी, और वह हेल्पिंग में ही नहीं है। वह वैज्ञानिक तरीका नहीं है।

हम जैसे बाहर जाते हैं तो कितने फुट दूर देखकर चलते हैं, सौ फुट, दो सौ फुट या नज़दीक का देखते हैं?

प्रश्नकर्ता: हाँ, नज़दीक का देखते हैं।

दादाश्री: दूर तक क्यों नहीं देखते? यदि दूर देखने जाएँगे तो नज़दीक का रह जाएगा और ठोकर लगेगी। अत: खुद अपने आप में, नॉर्मेलिटी में रहो। अर्थात् उसकी रोज़ सेफसाइड देखते रहो। हमें उसे अच्छे संस्कार देने चाहिए, ऐसा सब करना। आप उसी के जोखिमदार हो और दूसरी कोई जोखिमदारी आपका नहीं है। और ऐसी वरीज़ करने का अधिकार मनुष्य को है ही नहीं। मनुष्य को किसी भी प्रकार की वरीज़ करने का अधिकार है ही नहीं। मनुष्य तो चुपके से अपने अधिकार का उपयोग कर देता है। इस तरह वह गुप्त रूप से भगवान को ठगता है। वरीज़ करनी ही नहीं चाहिए, वरीज़ क्यों करनी चाहिए?

आप डॉक्टर लोग करते हैं ऐसा? किसकी चिंता करते हो आप?

प्रश्नकर्ता: सभी की।

दादाश्री: क्यों, सभी पेशन्ट मर जाते हैं उसकी? या घर के सभी लोगों की?

प्रश्नकर्ता: सभी। घर की, बाहर की, पेशन्टों की, सभी वरीज़, वरीज़, वरीज़ ही हैं।

दादाश्री: वह तो एक तरह का सिर्फ इगोइज़म ही कहलाता है। कृष्ण भगवानने कहा, जीव तू शीदने शोचना करे। कृष्णने करवुं होय ए करे! यहाँ से आप बाहर निलकते हो तो क्या लोंग सााइट देखकर चलते हो? क्यों हम नज़दीकी साइट देखते हैं? कि यहाँ एक्सिडेन्ट नहीं होगा, फिर वहीं आगे निकलते जाते हैं। अर्थात् सेफसाइड हो गई कहा जाएगा। आपको उसमें समझ में नहीं आया? हेल्प करेंगे या बात व्यर्थ जाएगी?

प्रश्नकर्ता: हेल्प करेगी।

दादाश्री: कितनी सारी युज़लेस बातें! यह तो बहुत दूर का देखोगे तो एक्सिडेन्ट कर दोगे, हर पाँच मिनट पर एक्सिडेन्ट कर दोगे।

समझ में आया न, वैज्ञानिक तरीका यह है, वे सभी तो गप्प मारने के तरीके हैं। बेटियों को किसी भी तरह की तकलीफ नहीं होगी। उसकी कुछ दवाईयाँ मैं देता हूँ, उसकी कोई तकलीफ नहीं होगी। फिर क्या लड़कियों के मामले में अब वह प्रश्न बंद हो जाता है, खत्म हो जाता है? विश्वास है कि खत्म (हो गया)?

प्रश्नकर्ता: हाँ।

दादाश्री: बेटे-बिटियाँ हैं, उनके माता-पिता बनकर, ट्रस्टी की तरह रहना है। उनकी शादी करने की चिंता नहीं करनी है।

यह तो साइन्स है, कभी-कभी ही अक्रम विज्ञान निकलता है, अक्रम यानी क्रम वगैरह नहीं। यह मुख्य मार्ग नहीं है, यह तो पगडंडीवाला रास्ता है, मुख्य मार्ग तो चल ही रहा है न! वह मार्ग अभी मूल स्टेज में नहीं है, अभी अपसेट हो गया है। सभी धर्म अपसेट हो गए हैं। जब धर्म मूल स्टेज में था तब तो जैनों के और वैष्णवों के घर चिंता बगैर के चलते थे। आजकल तो बेटी तीन साल की हो तभी से कहेगा कि, ‘देखो न, मुझे इस बेटी की शादी करवानी है।’ ‘अरे, बेटी की शादी बीस साल की उम्र में होगी, लेकिन अभी से किसलिए चिंता करता है? तो मरने की चिंता क्यों नहीं करता?’ तब कहेगा कि, ‘नहीं, मरने का तो याद ही मत करवाओ।’ तब मैंने कहा कि, ‘मरने की बात सुनने में क्या आपत्ति है? क्या आप नहीं मरनेवाले?’ तब कहता है कि, ‘लेकिन यदि मरने का याद करवाओगे न, तो आज का सुख चला जाएगा, आज का हमारा सारा स्वाद बिगड़़ जाएगा ।’ ‘तब बेटी की शादी का किसलिए याद कर रहा है? उससे भी तेरा स्वाद चला जाएगा न? और बेटी अपनी शादी का सबकुछ लेकर ही आई है। माँ-बाप तो इसमें निमित्त ही हैं।’ बेटी अपनी शादी का, सबकुछ ही साधन लेकर आई है। बैंक बैलेन्स, पैसा वगैरह सबकुछ लेकर आई है। ज़्यादा या कम, जितना भी खर्चा होगा, वह एक्ज़ेक्टली सबकुछ लेकर ही आई है। यह तो सिर्फ इतना ही है कि सब बाप को सौंपा हुआ है! इसलिए वरीज़ करने जैसा यह जगत् है ही नहीं। एक्ज़ेक्टली देखने जाएँ तो यह जगत् बिल्कुल वरीज़ करने जैसा है ही नहीं, था भी नहीं और होगा भी नहीं।

बेटी अपना हिसाब लेकर आई है। बेटी की वरीज़ आपको नहीं करनी हैं। बेटी के आप पालक हो। बेटी अपने लिए लडक़ा भी लेकर आई है। हमें किसी से कहने नहीं जाना पड़ता कि ‘बेटा पैदा करना। हमारी बेटी है उसके लिए बेटा पैदा करना,’ क्या ऐसा कहने जाना पड़ता है? यानी कि सब सामान तैयार लेकर आई है? जबकि बाप कहेगा, ‘यह पच्चीस साल की हो गई, अभी तक इसका ठिकाना नहीं पड़ा। ऐसा है, वैसा है।’ वह सारे दिन गाता रहता है। ‘अरे, वहाँ पर बेटा सत्ताइस साल का हो गया है, लेकिन तुझे मिल नहीं रहा है, तो शिकायत क्यों कर रहा है? सो जा न चुपचाप! वह बेटी अपना टाइमिंग वगैरह सबकुछ सेट करके लाई है।’

कुछ लोग तो अभी बेटी तीन वर्ष की हो तभी से चिंता करते हैं कि, ‘जाति में खर्चा बहुत है, किस तरह करूँगा?’ वे शिकायत करते रहते हैं। यह तो सिर्फ इगोइज़म करते रहते हैं। क्यों बेटी की चिंता करता रहता है? शादी के समय पर बेटी की शादी हो जाएगी। संडास संडास के टाइम पर होगी, भूख भूख के टाइम पर लगेगी, नींद नींद के टाइम पर आएगी। तू क्यों किसी भी चीज़ की चिंता कर रहा है? नींद अपना टाइम लेकर आई है, संडास अपना टाइम लेकर आई है, किसलिए वरीज़ करते हो? नींद का टाइम होते ही अपने आप आँखें मिंच जाएँगी। ‘उठना’ भी अपना टाइम लेकर आया है। उसी तरह बेटी भी अपने विवाह का टाइम लेकर आई है। वह पहले जाएगी या हम पहले जाएँगे, क्या इसका कोई ठिकाना है?

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