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बच्चे अपने पिता की बजाय माता की तरफदारी क्यों करते हैं?

प्रश्नकर्ता : सात्विक चिढ़ या सात्विक क्रोध अच्छा है या नहीं?

दादाश्री : लोग उसे क्या कहेंगे? ये बच्चे भी उसे कहेंगे कि, 'ये तो चिड़चिड़े ही हैं!' चिढ़ना मूर्खता है, फूलिशनेस है! चिढ़ना को कमज़ोरी कहते हैं। बच्चों से यदि पूछें कि, 'तुम्हारे पापाजी कैसे हैं?' तब वे भी बताएँगे कि, 'वे तो बहुत चिड़-चिड़े हैं।' बोलो, अब आबरू बढ़ी या घटी? यह कमज़ोरी नहीं होनी चाहिए। अर्थात् जहाँ सात्विकता होगी, वहाँ कमज़ोरी नहीं होगी।

घर में छोटे बच्चों को पूछें कि, 'तेरे घर में पहला नंबर किसका?' तब बच्चे ढूँढ निकालेंगे कि मेरी दादी नहीं चिढ़ती, इसलिए वह सब से अच्छी है, पहला नंबर उसका। फिर दूसरा, तीसरा करते-करते पापा का नंबर आखिर में आता है!!! ऐसा क्यों? क्योंकि वे चिढ़ते हैं। चिड़-चिड़े है इसलिए। मैं यदि कहूँ कि, 'पापा पैसे लाकर खर्च करते हैं, फिर भी उनका आखिरी नंबर?' तब वह 'हाँ' कहता है। बोलो अब, मेहनत-मज़दूरी करते हो, खिलाते हो, पैसे लाकर देते हो, फिर भी आखिरी नंबर आपका ही आता है न?

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