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नकारात्मक भावों को कैसे रोकें?

मन-वचन-काया के तमाम लेपायमान भाव, वे क्या होते हैं? वे चेतनभाव नहीं हैं। वे सारे प्राकृतिक भाव, जड़ के भाव हैं। लेपायमान भाव मतलब हमें लेपित नहीं होना हो तो भी वह लेपायमान कर देते हैं। इसलिए हम कहते हैं न कि, 'मन-वचन-काया के तमाम लेपायमान भावों से मैं सर्वथा निर्लेप ही हूँ।' उन लेपायमान भावों ने पूरे जगत् को लेपायमान किया है और वे लेपायमान भाव वे सिर्फ प्रतिघोष ही हैं। और वे निर्जीव हैं वापिस। इसलिए आपको उनका सुनना नहीं चाहिए।

पर वे यों ही चले जाएँ, वैसे भी नहीं हैं। वे शोर मचाते ही रहेंगे। तो उपाय क्या करोगे? हमें क्या करना पड़ेगा? उन अध्यवसन को बंद करने के लिए? 'वे तो मेरे उपकारी हैं' ऐसा-वैसा बोलना पड़ेगा। अब आप ऐसा बोलोगे तब वे उल्टे भाव सारे बंद हो जाएँगे, कि यह तो नई ही तरह का 'उपकारी' कहता है वापिस। इसलिए फिर शांत हो जाएँगे!

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