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त्रिकालज्ञान किसे कहा जाता है? क्या सर्वज्ञ भगवान भूतकाल और भविष्यकाल के सभी पर्याय जानते हैं?

त्रिकालज्ञान

वर्तमान में रहकर तीनों काल का देखाई दें,वह है त्रिकालज्ञान।

प्रश्नकर्ता: त्रिकालज्ञान की यथार्थ डेफिनिशन क्या है?

दादाश्री: एक ही वस्तु का तीनों काल का ज्ञान, तीनों काल में क्या स्थिति होगी उसका ज्ञान, उसे त्रिकाल ज्ञान कहा है। भूतकाल में क्या था, वर्तमान में क्या है और भविष्य में क्या होगा? उसका उसे ज्ञान है। उसे त्रिकाल ज्ञान कहा है।

तीनों काल के ज्ञान को अपने लोग क्या समझते हैं कि ‘पहले जो हो गया वह, अभी जो हो रहा है वह और भविष्य में जो होगा, वो भी देख सकते हैं,’ उसी को कहते हैं न?

प्रश्नकर्ता: हाँ, सही, वही त्रिकाल।

दादाश्री: लेकिन ऐसा नहीं है। तीनों काल का ज्ञान एट-ए-टाइम हो सकता है क्या, बुद्धिपूर्वक समझो तो? यदि बुद्धिपूर्वक समझें तो भविष्यकाल को वर्तमानकाल ही कहा जायेगा न? हमें तीनों काल का अभी दिखाई देता हो तो वह कौन सा काल कहलाता है?

प्रश्नकर्ता: वर्तमान, सही है।

दादाश्री: वर्तमान काल ही कहलाता है न! तीन काल का ज्ञान कहलाता है, लेकिन वह तीन काल का ज्ञान किस तरह से है? त्रिकालज्ञान ऐसी चीज़ है कि आज हमने कोई चीज़ देखी, यदि यह घड़ा देखा, अभी वर्तमान काल में सरल भाषा में वह घड़ा है। अभी घड़ा दिखा, वह ज्ञेय कहलाता है। अभी यह जो घड़ा है वह भूतकाल में क्या था, मूल पर्याय में क्या था, वह ज्ञान हमें बताएँगे? तब कहते हैं, हाँ, मूलत: मिट्टी के रूप में था। मिट्टी को भिगोकर कुम्हार ने उसे चाक पर चढ़ाया और उसका घड़ा बनाया। फिर उसे पकाया। फिर बाज़ार में बिका और अभी जैसा दिख रहा है वैसा है। फिर भविष्य में क्या होगा? तो कहते हैं ‘भविष्य में यहाँ से वह टूट जाएगा। वहाँ से फिर धीरे-धीरे उसके छोटे-छोटे टुकड़े बन जाएँगे। वे टुकड़े वापस घिसते-घिसते मिट्टी बन जाएँगे।’ अर्थात् वर्तमान में भूतकाल एवं भविष्य काल दोनों का वर्णन कर सकते हैं। हर एक पर्याय दिखा सकते हैं, भविष्य के और भूतकाल के पर्याय। अर्थात् हर एक चीज़ की भूतकाल एवं भविष्य काल की स्थिति बता सके, वह त्रिकाल ज्ञान।

Reference: Book Name: आप्तवाणी 14 (Part 3) (Page 273 - Paragraph #1 to #7, Page #274 - Paragraph #1)

भूत, भविष्य जाने, वही काल वर्तमान

प्रश्नकर्ता: सर्वज्ञ भगवान भूतकाल के और भविष्य काल के सभी पर्यायों को जानते हैं?

दादाश्री: वर्तमान में सभी पर्यायों को जानते हैं। कृपालुदेव ने इसका बहुत अच्छा अर्थ किया है। एक समय में ये पर्याय ऐसे थे उसे भी जानते हैं और ये पर्याय ऐसे बन जाएँगे उसे भी जानते हैं, और बिल्कुल ऐसे हो गए हैं, ऐसा भी जानते हैं।

अर्थात् सर्वज्ञ एक काल में वह सब जानते हैं, तो वह भविष्य काल और भूतकाल रहा ही नहीं फिर, सब वर्तमान काल ही है।

प्रश्नकर्ता: हाँ, उनके लिए वर्तमान काल है।

दादाश्री: यानी कि वर्तमान काल में भविष्य काल नहीं देखा जा सकता, इसलिए तीर्थंकर भगवान ने कहा कि इस तरह से दिख सकता है कि इस घड़े को आज देखा तो मूल रूप से वह ऐसा था, उसमें से ऐसा बन गया, फिर ऐसा हुआ, इस तरह से पर्याय बदलते-बदलते मिट्टी बन जाएगी। उसी प्रकार जीवों का हैं, अत: सभी पर्याय को जानते हैं वे।

प्रश्नकर्ता: तीर्थंकर सभी जीवों की सभी वस्तुओके पर्यायों को जानते हैं?

दादाश्री: हाँ

प्रश्नकर्ता: जिनमें उपयोग रखे उन सभी को जान सकते हैं न?

दादाश्री: उन्हें कोई चीज़ दिखाई दी कि सभी पर्याय बता सकते हैं, इससे पहले कैसे पर्याय थे और बाद में कैसे! उपयोग ही रहता है, केवलज्ञान अर्थात् शुद्ध उपयोग, कम्प्लीट शुद्ध उपयोग।

प्रश्नकर्ता: लेकिन उनका उपयोग अन्य किसी में नहीं होगा न? खुद के स्वभाव में ही रहता है।

दादाश्री: वही स्वभाव!

प्रश्नकर्ता: लेकिन उन सब के पर्याय प्रतिबिंबित होते हैं?

दादाश्री: लेकिन वही केवलज्ञान स्वभाव, सभी पर्यायों को जानना, वही शुद्ध उपयोग है।

प्रश्नकर्ता: वह सही बात है, लेकिन किसके जाने और कब!

दादाश्री: उसे जानने का प्रयत्न नहीं होता है, इसलिए जानता ही है सिर्फ। सहज स्वभाव से सभी पर्याय ऐसे थे, ऐसा जानते हैं और ऐसा होगा वह भी जानते हैं। फिर इसका दूसरा कोई अर्थ करने जाएँगे तो उल्टा हो जाएगा।

Reference: Book Name: आप्तवाणी 11 पूर्वार्ध (Page #251 - Paragraph #3 to #9, Page #252 - Paragraph #1 to #8)

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