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कुदरत के न्याय का स्वरूप क्या है?

जो कुदरत का न्याय है, उसमें एक क्षण के लिए भी अन्याय नहीं हुआ। यह कुदरत जो है, वह एक क्षण के लिए भी अन्यायी नहीं हुई। कोर्ट में अन्याय हुआ होगा, लेकिन कुदरत कभी अन्यायी हुई ही नहीं। कुदरत का न्याय कैसा है कि, यदि आप चोखे इन्सान हो और यदि आज आप चोरी करने जाओ तो आपको पहले ही पकड़वा देगी और यदि मैला इन्सान होगा तो उसे पहले दिन एन्करेज(प्रोत्साहित) करेगी। कुदरत का ऐसा हिसाब होता है कि पहलेवाले को चोखा रखना है इसलिए उसे पकड़वा देगी, उसे हेल्प नहीं करेगी और दूसरेवाले को हेल्प करती ही रहेगी और बाद में ऐसी मार मारेगी कि फिर वह ऊपर नहीं उठ पाएगा। वह अधोगति में जाएगा। कुदरत एक मिनट भी अन्यायी नहीं हुई। लोग मुझे पूछते हैं कि यह आपके पैर में फ्रेक्चर हुआ है, वह? यह सब कुदरत ने न्याय ही किया है।

यदि कुदरत के न्याय को समझोगे कि 'हुआ सो न्याय', तो आप इस जगत् में से मुक्त हो पाओगे वर्ना कुदरत को ज़रा-सा भी अन्यायी समझा तो वह आपके लिए जगत् में उलझने का ही कारण है। कुदरत को न्यायी मानना, उसका नाम ज्ञान। 'जैसा है वैसा' जानना, उसका नाम ज्ञान और 'जैसा है वैसा' नहीं जानना, उसका नाम अज्ञान।

एक आदमी ने दूसरे आदमी का मकान जला दिया, तो उस समय कोई पूछे कि भगवान यह क्या है? इसका मकान इस आदमी ने जला दिया। यह न्याय है या अन्याय? तब कहे, 'न्याय। जला डाला वही न्याय।' अब इस पर वह कुढ़ता रहे कि नालायक है और ऐसा है, वैसा है। तब फिर उसे अन्याय का फल मिलेगा। वह न्याय को ही अन्याय कहता है! जगत् बिल्कुल न्याय स्वरूप ही है। एक क्षणभर के लिए भी इसमें अन्याय नहीं होता।

जगत् में न्याय ढूँढने से ही तो पूरी दुनिया में लड़ाइयाँ हुई हैं। जगत् न्याय स्वरूप ही है। इसलिए इस जगत् में न्याय ढूँढना ही मत। जो हुआ, सो न्याय। जो हो गया वही न्याय। ये कोर्ट आदि सब बने वे, न्याय ढूँढते हैं इसलिए! अरे भाई, न्याय होता होगा?! उसके बजाय 'क्या हुआ' उसे देख! वही न्याय है।

'न्याय' स्वरूप अलग है और अपना यह फल स्वरूप अलग है! न्याय-अन्याय का फल, वह तो हिसाब से आता है और हम उसके साथ न्याय जॉइन्ट करने जाते हैं, फिर कोर्ट में ही जाना पड़ेगा न! और वहाँ जाकर, थककर, आखिर में वापस ही आना है!

आपने किसी को एक गाली दी तो फिर वह आपको दो-तीन गालियाँ दे देगा, क्योंकि उसका मन आप पर गुस्सा होता है। तब लोग क्या कहते हैं? तूने क्यों तीन गालियाँ दी, इसने तो एक ही दी थी। तब उसमें क्या न्याय है? उसका हमें तीन ही देने का हिसाब होगा, पिछला हिसाब चुका देते हैं या नहीं?

प्रश्नकर्ता: हाँ, चुका देते हैं।

दादाश्री: वसूल करते हैं या नहीं करते? आपने उसके पिताजी को रुपये उधार दिए हों, लेकिन फिर कभी हमें मौका मिले तो वसूल कर लेते हो न? लेकिन वह तो समझेगा कि अन्याय कर रहा है। उसी प्रकार कुदरत का न्याय है। जो पिछला हिसाब होता है, वह सारा इकट्ठा कर देता है। अब यदि कोई स्त्री उसके पति को परेशान कर रही हो, तो वह कुदरती न्याय है। उसका पति समझता है कि यह पत्नी बहुत खराब है और पत्नी क्या समझती है कि पति खराब है। लेकिन यह कुदरत का न्याय ही है।

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