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ब्रह्मचर्य का पालन करने में मन की क्या भूमिका है?

मन का स्वभाव क्या है ?

मन विरोधाभासी है । यह आपको दोनों तरह के विचार दिखायेगा ब्रह्मचर्य का पालन करना और आपको विवाह करने के विचार भी दिखायेगा ।

तब फिर मेरा मन, मुझे ब्रह्मचर्य पालन करने में मदद कैसे कर सकता है ?

यदि आप ब्रह्मचर्य पालन करने का दृढ़ निश्चय लेते हो और कुछ भी स्थिति आती है, तब मन ज्यादातर स्थिरता में ही रहेगा | यह स्थिरता ही ब्रह्मचर्य पालन करने में मदद करेगी ।

यदि आप ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना चाहते है तो आपको मजबूत रहना होगा । मन कहेगा विवाह करो , ऐसा आपसे भी बुलवाऐगा । यदि मन आपको विवाह करने के विचार या विषय के विचार दिखाए , तब आपको विरोध करना रहेगा । ऐसा करने से मन को समझ आता है कि अब मेरी कोई सुनने वाला नहीं है । तो चलो अपना बिस्तर पैक कर दूसरे गांव जाने के लिए तैयार हो जाए । जब इसका अपमान होता है तो चीज़े बेहतर हो जाती है, क्योंकि मन आपके नियंत्रण में आने लगता है।

मन को कब जीत पाएँगे?

मन को तो कब जीत सकते हैं? नज़रे आकर्षित होते ही समझ जाए कि ये मन की वजह से आकर्षित हो रही हैं फिर तुरंत ही मन की सभी बातों को काट दे। यहाँ पर आने के लिए मन मना करे तो उसमें भी उसे काट दे। मन तो भागने के रास्ते ढूँढता है। जहाँ पर मेहनत नहीं करने पड़े, मन वहाँ जाना चाहता है। अगर मन के कहे अनुसार नहीं चलेगा तो सब ठीक हो जाएगा।

ब्रह्मचर्य का पालन करने का आपका निश्चय केवल पूर्ण ब्रह्मचर्य को प्राप्त करने के आपके ध्येय के अनुसार है। अपना निश्चय अपने ध्येय के अनुसार ही है। आज के निश्चय के अनुसार ही करना है हमें। हमारी आज की जो प्लानिंग (आयोजन) है उसके अनुसार ही करना है, मन की प्लानिंग के अनुसार नहीं। अन्यथा ब्रह्मचर्य का पालन करने का ध्येय प्राप्त नहीं होगा ।

निश्चय (दृढ़ संकल्प और अडगता ) क्या है ?

निश्चय किसे कहते हैं? कि कैसा भी लश्कर आ जाए फिर भी उसकी सुने नहीं! अंदर कितने भी समझानेवाले मिलें फिर भी उनकी सुनें नहीं! निश्चय करने के बाद, फिर वह बदले नहीं, तो उसी को निश्चय कहते हैं।

निश्चय अर्थात् सभी विषय विचारों को बंद कर के , एक ही विचार पर आना कि मुझे ब्रह्मचर्य का पालन करना है। यदि आप दृढ़ निश्चय करते है ब्रह्मचर्य पालन करने का तो सभी संयोग आ मिलेंगे और निश्चय पक्का होगा। अगर आपका निश्चय कच्चा हो तो संयोग नहीं मिलेंगे और ध्येय पूरा नहीं होगा ।

यदि ब्रह्मचर्य का भाव कमजोर और कपटवाले न हो , तब क्या विषय के विचारों को आने से रोका जा सकता है ?

नहीं, विचार को आने दो न । विचार आता है तो उसमें हमें क्या हर्ज है? विचार बंद नहीं हो जाते। किन्तु नियत ऐसी चोर नहीं होनी चाहिए। अंदर चाहे कैसी भी लालच क्यों न हो, लेकिन वहा झुके नहीं, ऐसा स्ट्रोंग होना चाहिए ।

व्यावहारिक रूप से सोचें:

कुएँ में गिरना ही नहीं है ऐसा निश्चय है, वह चार दिनों से सोया नहीं हो और उसे कुएँ के किनारे पर बिठाएँ फिर भी नहीं सोएगा वहाँ। इसलिए दृढ़ निश्चय से ही आप अपने ब्रह्मचर्य के लक्ष्य को पाने के लिए सक्षम होगे ।

किस कारण से हमारा दृढ़ निश्चय टूटता है?

किसी स्त्री को यदि हाथ यों ही छू गया हो तो भी निश्चय को डिगा दे। वे परमाणु रात को सोने भी नहीं दें! इसलिए स्पर्श तो होना ही नहीं चाहिए और दृष्टि बचाएँ तो फिर निश्चय डिगेगा नहीं।

मन को इस तरह से नहीं चलने देना है। ऐसा नहीं होने देना है कि मन हमें खींच ले जाए, हमें मन को अपनी तरह से चलाना है। मन तो जड़ है। ये लोग मन के अनुसार चलते हैं तो उनका सर्वस्व चला जाएगा।

मन के कहे अनुसार नहीं चलना है। जो मन के कहे अनुसार चले न, तो उसका ब्रह्मचर्य नहीं टिकेगा, कुछ भी नहीं टिकेगा। बल्कि अब्रह्मचर्य हो जाएगा।

अपने स्वतंत्र निश्चय से जीओ। मन की ज़रूरत हो तो लेना और ज़रूरत नहीं हो तो छोड़ दो। एक ओर रख दो उसे। लेकिन यह मन तो पंद्रह-पंद्रह दिनों तक घुमाकर फिर शादी करवा देता है। यह ब्रह्मचर्य पालन करते हैं, तो उसमें ब्रह्मचर्य यानी खुद का निश्चयबल। कोई डिगा न सके, ऐसा। जो किसी के कहे अनुसार चले, वह ब्रह्मचर्य पालन कैसे कर सकेगा?

अपने सिद्धांत के अनुसार चले

मन आइसक्रीम माँगता रहता हो, तो वो उसके ब्रह्मचर्य के सिद्धांत को इतना ज्यादा नुकशान नहीं करता । इसलिए उसे ज्यादा नहीं, थोडा-सा आइसक्रीम देना चाहिए । उसे डिस्करेज मत करो । उसे थोड़ी गोलियां भी खिला देना । “नहीं मिलेगा, जाओ” ऐसे उसे दबाना नहीं है । केवल अब्रह्मचर्य की बात आई तो संभल जाना, तब सोच – विचार से काम लेना कि, ‘देखो, यह हमारा सिद्धांत है । सिद्धांत के बीच तू मत आना ।‘ एस तरह ब्रह्मचर्य का पालन कर सकते है

कैसे अपरिचय के माध्यम से ब्रह्मचर्य बनाए रखे

एक बार उस चीज़ से दूर रहे न, बारह महीने या दो साल तक दूर रहे तो उस चीज़ को भूल ही जाता है फिर। मन का स्वभाव कैसा है? दूर रहा कि भूल जाता है। नज़दीक जाए तो फिर कोचता रहता है! मन का परिचय छूट गया। ‘हम’ अलग रहे, इसलिए मन भी उस चीज़ से दूर रहा, इसलिए फिर भूल जाता है, हमेशा के लिए। उसे याद तक नहीं आती। बाद में, कहने पर भी उस तरफ नहीं जाता। ऐसा तुझे समझ में आता है? तू तेरे दोस्त से दो साल दूर रहेगा तो फिर तेरा मन भूल जाएगा। महीने-दो महीने तक किच-किच करता रहेगा, मन का स्वभाव ऐसा है और अपना ज्ञान तो मन की सुनता ही नहीं है न?

सच्ची समझ से मन को जीतें

मन को दबाकर नहीं रखना है। मन को वश करना है। वश यानी जीतना है। हम दोनों किच-किच करें, तो उसमें जीतेगा कौन? तुझे समझाकर मैं जीत जाऊँ तो फिर तू परेशान नहीं करेगा न? और बिना समझाए जीत जाऊँ तो? मन चुप रहेगा कि समाधान हो गया है । इसी तरह, हम आत्मज्ञान के माध्यम से सही समझ प्राप्त कर सकते हैं। दुनिया में सिर्फ आत्मज्ञान ही ऐसा है कि जो मन को वश कर सकता है।

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