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बच्चों को सुधारने के लिए क्या हमें उन्हें मारना चाहिए?

इस जगत् में आप किसीको दुःख देंगे, तो उसका प्रतिघोष आप पर पड़े बगैर रहेगा नहीं। स्त्री-पुरुष ने तला़क लेने के बाद, पुरुष फिर से शादी करे उसके बावजूद पहलीवाली स्त्री को दुःख रहता हो। तो उसके प्रतिघोष उस पुरुष पर पड़े बगैर रहते ही नहीं, और वह हिसाब वापस चुकाना पड़ेगा।

प्रश्नकर्ता : ज़रा विस्तारपूर्वक समझाइए न!

दादाश्री : यह क्या कहना चाहते है कि जब तक आपके निमित्त से किसीको ज़रा-सा भी दुःख होता है, तो उसका असर आप पर ही पड़नेवाला है। और वह हिसाब आपको पूरा करना पड़ेगा, इसलिए चेतो।

आप ऑफिस  में असिस्टेंट को झिड़को तो उसका असर आप पर पड़े बगैर रहेगा या नहीं? पड़ेगा ही। बोलो अब, जगत् दुःख में से मुक्त किस तरह हो?

इसलिए किसीका असर छोड़ता नहीं है और बच्चे को सुधारने जाओ, लेकिन उससे उसे दुःख हो तो उसका असर आप पर पड़ेगा। इसलिए ऐसा कहो कि जिससे उसे असर न पड़े और वह सुधरे। तांबे के और काँच के बरतन में फर्क नहीं होता? आप तांबे के और काँच के बरतन को एक समझते हो? तांबे का बरतन पिचक जाए तो ठीक हो सकता है। लेकिन काँच का तो टूट जाता है। बच्चे की तो पूरी ज़िन्दगी खतम हो जाती है।

इस अज्ञानता से ही मार खानी पड़ती है। इसे सुधारने के लिए आप कहो, उसे सुधारने के लिए कहो। लेकिन कहने से उसे जो दुःख हुआ, उसका असर आप पर आएगा।

प्रश्नकर्ता : इस काल में बच्चों को तो कहना पड़ता है न?

दादाश्री : कहने में हर्ज नहीं है, लेकिन ऐसा कहो कि उसे दुःख न हो और उसका प्रतिघोष वापस आप पर न पड़े।  हमें तय कर देना चाहिए कि हमें किसीको किंचित् मात्र दुःख देना नहीं है।

जिससे किसीको किंचित् मात्र दुःख नहीं होता हो, वह खुद सुखी होता है। उसमें दो मत ही नहीं है। हम जो आज्ञा देते हैं, वह आप सर्व दुःखों से मुक्त हो जाओ, वैसी आज्ञा देते हैं। और आज्ञा पालते हुए आपको कोई भी परेशानी नहीं होती। हमारी आज्ञा, किसी  भी परेशानी रहित की है।

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