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बच्चों को नैतिक मूल्य कैसे सिखाएँ?

एक अच्छे माता-पिता की क्या भूमिका होती है? उन्हें अपने बच्चे को इस प्रकार तैयार करें कि पंद्रह साल की उम्र तक सभी संस्कार दे दें।

परम पूज्य दादाश्री कहते हैं, ‘इस हिन्दुस्तान का एक बच्चा सारे विश्न का बोझ उठा सके, इतनी शक्ति का धनी है। सिर्फ उसे पुष्टि देने की ज़रूरत है।’

आइए सर्व प्रथम आज की पीढ़ी के स्वभाव को परम पूज्य दादाश्री के शब्दों में समझें ताकि हम उनकी ताकत और कमजोरियों को पहचान सकें और फिर उनके विकास के लिए नैतिक मूल्य सिखा सकें।

समझें आज के युवा की स्वभाव को

अ) आज के युवा का हृदय (शुद्ध) प्योर है।

प्रश्नकर्ताः आज का युवावर्ग कौन-सी राह पर जा रहा है? आप की दृष्टि से उनका भविष्य क्या है? सच्ची राह कौन-सी है?

दादाश्रीः आज का युवावर्ग, कोई भी मार्गदर्शन नहीं मिलने के कारण सफोकेशन में है। लेकिन आज का युवावर्ग जो है, ऐसा युवावर्ग पहले किसी काल में था नहीं, वैसा है। जो बहुत चोखा है, प्योर है। उसे, मार्गदर्शन देने वाले की ज़रूरत है। यदि उन्हें मार्गदर्शन दें तो हिन्दुस्तान एकदम ओलराइट (ठीक) हो जाएगा। और मार्गदर्शन देने वाला मिल जाएगा अब थोड़े ही समय में।

ब) आज की पीढ़ी हेल्दी माइन्डवाली है।

परम पूज्य दादाश्री कहते हैं:

  • आजकल की पीढ़ी उदार विचारों वाली है। वह पहले जैसी संकुचित, क्षुद्र और अंधविश्वासी पीढ़ियों की तरह नहीं है। उनकी तुलना में, यह पीढ़ी खुले दिलवाली, उदार विचारों वाली, और हेल्दी माइन्ड वाली है।
  • पूर्वभव का सब शुद्ध हिसाब (माल) लेकर आएँ हैं। उनमें लोभ भी नहीं है, और मान की भी परवाह नहीं।
  • उनमें एकमात्र कमज़ोरी यह है कि उनमें मोह ज्यादा है, भौतिक चीज़ों के प्रति अत्याधिक आसक्ति है।
  • बच्चों के लिए अच्छी भावना करते रहो। सभी अच्छे संयोग आ मिलेंगे। बच्चे सुधरेंगे, लेकिन अपने आप कुदरत सुधारेगी। बच्चे बहुत अच्छे हैं। जैसे किसी काल में नहीं थे ऐसे बच्चे हैं आज!
  • भले वे व्यसनी दिखें लेकिन उन बेचारों को सच्चा रास्ता प्राप्त नहीं हुआ इसलिए। उनका दोष नहीं है। उनके माईन्ड हेल्दी हैं।

प्रश्नकर्ताः हेल्दी माईन्ड यानी क्या?

दादाश्रीः हेल्दी माइन्ड यानी मेरा-तेरा की ज़्यादा पड़ी नहीं होती और हम जब छोटे थे न, तब किसी का कुछ बाहर रखा हो, तो ले लेने की इच्छा होती थी। किसी के यहाँ खाना खाने गए तो घर पर खाते हैं उसकी तुलना में थोड़ा ज़्यादा खा लेते थे। यह तो मेरी खोज-बीन है। अगर कभी हेल्दी माइन्ड की जनरेशन पैदा हुई हो, तो वह इस काल में पैदा हुई है। हेल्दी होते-होते आई है। हमारे समय से हेल्दी होते-होते आई लगती है, ममता ही नहीं है। इन लोगों में ढंग आने में देर नहीं लगेगी, संस्कार आने में देर नहीं लगेगी।

कुदरत का यह उपकार है कि यह जनरेशन बिल्कुल हेल्दी माइन्ड की पैदा हुई है! ऐसी कभी पैदा नहीं होती और जब पैदा होती है तब वल्र्ड का कल्याण करती है! इन्हें मार्गदर्शन देनेवाला चाहिए।

मैं हेल्दी माइन्ड क्यों कह रहा हूँ क्योंकि उन्हें जैसा सिखाते हैं वैसे ही तैयार हो जाते हैं।

  • पुराने रोग नहीं हैं। जब भूख लगे तब खाना ढूँढते हैं, और कुछ नहीं।
  • उनमें ममता नहीं है, इसलिए उनका बाप अगर अपना घर बेचने की सोचे, तो उसे अंदर कुछ पड़ी नहीं होती। और पूराने जमाने में तो बाप से कहते थे “बेचना नहीं है आपको।” आजकल तो हेल्दी माइन्ड वाले हैं, ममता नहीं है।
  • इसलिए उन्हें जैसा बनाना हो वैसे बनाए जा सकते हैं।

क) बिना बरकत वाले लोग ही वास्तव में नैतिक मूल्यों से सुधरेंगे। 

प्रश्नकर्ताः आप कहते हैं कि आजकल की जनरेशन ‘हेल्दी माइन्ड’ की है और दूसरी तरफ देखें तो सब व्यसनी हैं, और कितना ही है?

दादाश्रीः भले ही वे व्यसनी दिखाई दें लेकिन उन बेचारों को रास्ता न मिले तो और क्या होगा? उनका माइन्ड हेल्दी है।

प्रश्नकर्ताः बच्चे माँ-बाप का तिरस्कार करते हैं, माँ-बाप की सुनते नहीं हैं, ऐसे सब हैं न।

दादाश्रीः वे तिरस्कार वगैरह इसलिए करते हैं, कि उन्हें मार्ग नहीं मिला है। अगर मार्ग मिल जाए तो ये बहुत अच्छे बच्चे हैं।

प्रश्नकर्ताः ये बच्चे ही बहुत बड़ी समस्या है।

दादाश्रीः समस्या तो ज़बरदस्त बड़ी है लेकिन वह समस्या सुधर सकती है। इसी काल में ऐसे बच्चे हैं कि जिनमें बिल्कुल भी बरकत नहीं हैं और बरकत नहीं हो तभी सुधरेंगे। बरकत वाले नहीं सुधरेंगे। बरकत वाले तो अपने स्वार्थ में आगे होते हैं, और तिरस्कार होता है, दूसरा होता है, सब स्वार्थ में आगे होते हैं इसीलिए तो पूरा हिंदुस्तान बिगड़ गया न! इसके बजाय तो बिना बरकत वाला माल अच्छा। मान की नहीं पड़ी है, किसी भी प्रकार की कुछ भी नहीं पड़ी है।

नैतिक मूल्यों को सिखाने (के विकास) में माता-पिता की भूमिका

  • उचित मार्गदर्शन के अभाव में युवावर्ग स्वार्थी हो गया है और जीवन के प्रति अत्यंत स्वार्थी दृष्टिकोण रखने लगा है। बच्चों को कभी भाग्य के भरोसे मत छोड़ो। उनका ख्याल रखें और उन पर नज़र रखें। यदि आप उन्हें छोड़ देंगे तो कोई आशा नहीं रहेगी। बच्चे जन्म से ही अपना व्यक्तित्व साथ में लेकर आते हैं, लेकिन आपको उनकी अच्छा (पालन-पोषण) करना होगा ताकि वे फल-फूल सकें।
  • बच्चों में संस्कार माँ-बाप के आते हैं। गुरु के और उनके फ्रेन्ड सर्कल का थोड़ा बहुत संयोग होता है। बाकी सब से उच्च संस्कार माँ-बाप से मिलते हैं। अगर माँ-बाप संस्कारी होंगे तो बच्चे संस्कारी बनेंगे, वर्ना संस्कार होते ही नहीं न।
  • जैसे आपके गुण होंगे, बच्चे वैसा ही सीखेंगे। आप धर्म स्वरूप हो जाओ, तो वे भी हो जाएँगे। इसलिए आप ही धर्मिष्ठ हो जाना। आपको देख-देखकर सीखेंगे। यदि आप सिगरेट पीते होंगे, तो वे भी सिगरेट पीना सीखेंगे। आप शराब पीते होंगे तो वे भी शराब पीना सीखेंगे। माँस खाते होंगे तो माँस खाना सीखेंगे। जो आप करते होंगे वैसा ही वे सीखेंगे।
  • पहले तो माता-पिता को संस्कारी बनना चाहिए। फिर बच्चे बाहर जाएँगे ही नहीं। माता-पिता ऐसे हों कि उनका प्रेम देखकर बच्चे वहाँ से दूर जाएँ ही नहीं। बच्चों को अगर सुधारना हो तो आपकी ज़िम्मेदारी है। बच्चों के साथ आप फर्ज़ से बँधे हुए हो।
  • माता-पिता की एक मात्र यही भावना होनी चाहिए कि वे बच्चों को ऐसे संस्कार दें जिससे बच्चें गलत रास्ते पर न जाएँ। फिर जो भी परिणाम आए वह कर्मों का हिसाब है।
  • यदि माता-पिता स्वयं अनुशासन में रहेंगे तो बच्चे भी अच्छे नैतिक मूल्य सीखेंगे।
  • माँ-बाप को कभी झगड़ना नहीं चाहिए, मतभेद नहीं पड़ना चाहिए। मतभेद पड़ गया हो तो, सुलह कर लेनी चाहिए। बच्चे देखेंगे कि ‘ओहोहो! माँ-बाप कितनी अच्छी तरह से जी रहे हैं।’

बच्चों में नैतिक मूल्य विकसित करने के उपायः

अ) अध्यात्म की ओर मोड़ें

जिन बच्चों को कम उम्र से ही (बचपन से) अध्यात्म का वातावरण मिलता है वे आगे जाकर रत्न साबित होते हैं। यदि माता-पिता की अध्यात्म में रूची हो, तो बच्चे भी उनका अनुसरण करते हैं। माता-पिता को पैसा कमाने, सामाजिक दायित्वों, पार्टियों आदि में व्यस्त नहीं रहना चाहिए, उन्हें बच्चों के साथ समय बिताना चाहिए।

उन्हें आध्यात्मिक समर केम्प, बच्चों की शिविर में भेजें। जो उनमें अच्छे मूल्यों (संस्कारो) का पोषण करेंगे।

ब) उन्हें अच्छी संगति में रखें

बच्चों को अच्छा साथ (मित्र), अच्छी मित्र मंडली देने की कोशिश करें क्योंकि उन पर इसका जबरदस्त प्रभाव पड़ता है।

क) घर में रोज प्रार्थना करें

शुद्धता, अंदर की और बाहर की आसपास के वातावरण से आती है। बच्चों को समझाना चाहिए कि सुबह नहा-धोकर भगवान की पूजा करनी चाहिए और रोज़ प्रार्थना करें कि, ‘मुझे तथा जगत् को सद्बुद्धि दीजिए और जगत् कल्याण कीजिए।’ इतना बोलेंगे तो उन्हें संस्कार मिले कहलाएगा, और माँ-बाप का कर्मबँधन छूट जाएगा।

ड) आरती से वातावरण शुद्ध होता है

आरती (भगवान के सामने दीपक जलाकर प्रार्थना गाना ) भगवान की भाव-भक्ति का एक उत्तम साधन माना जाता है। भगवान के प्रति आदर और प्रेम प्रकट करने का एक तरीका है। यह उन्हें प्रसन्न भी करता है। व्यक्ति जिसकी भक्ति करता है खुद उस रूप होता जाता है। रोज आरती करने से हमें कई तरह के लाभ मिलते हैं। यह तो केश बैंक है, नकद है, और तुरंत फल मिलता है।

  • आरती से मन की एकाग्रता रहती है और पूरा दिन शांति रहती है।
  • मन से खराब विचार (स्वयं और दूसरों को नकारत्मक रूप से प्रभावित करने वाले) तुरंत ही दूर हो जाते हैं।
  • चिंता हमेशा के लिए चली जाती है।
  • घर में क्लेश नहीं होता।
  • पवित्र-आनंदमय वातावरण बना रहता है।
  • घर के में सभी को उच्च संस्कार मिलते हैं जैसे ईमानदारी, सिन्सियरिटी (निष्ठा) आदि

आरती करने से बच्चे इतने सुधर गए हैं कि सिनेमा नहीं जाते। सिनेमा अब उनके लिए मनोरंजन का मुख्य साधन नहीं रहा है। शुरू के दो-तीन दिन थोड़े टेढ़े-मेड़े रहते हैं, लेकिन बाद में, उन्हें याद है कि प्रार्थना करना कितना अच्छा लगता है और वे सकारात्मक प्रतिभाव देते हैं।

इ) रोज़ सुबह माता-पिता को प्रणाम करें।

जो माता-पिता की सेवा नहीं करते, वे इस जन्म में सुखी नहीं होंगे। माता-पिता की सेवा करने से क्या फायदा है? तब कहेंगे कि जीवन में कभी भी दुःख नहीं आएँगे। अड़चने नहीं आएँगी!

माता-पिता की सेवा अवश्य करनी चाहिए। यदि आप सेवा नहीं करेंगे तो आपकी सेवा कौन करेगा? आपके बाद वाली प्रजा किस तरह से सीखेगी कि आप सेवा करने लायक हो? बच्चे सब देखते हैं। वे देखते हैं कि हमारे (फादर) पिताजी ने ही कभी अपने माता-पिता की सेवा नहीं की है तो फिर संस्कार तो आएँगे ही नहीं न! जब आप इतनी बड़ी उम्र में भी अपने माता-पिता को प्रणाम करते हैं तो बच्चों के मन में भी ऐसे विचार नहीं आएँगे कि पिताजी लाभ लेते हैं तो हम क्यों नहीं लें? अपने बच्चों में संस्कार डालने का यह सबसे आसान तरीका है।

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