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बच्चों से कैसे बात करें ?

परवरिश का सबसे महत्वपूर्ण पहलू : बच्चों से कैसै बात करें?

बच्चों के साथ वार्तालाप करने के लिए दादाश्री ने कुछ महत्वपूर्ण बातें बताई हैं:

  • माता-पिता को इस तरह से रहना चाहिए कि उनका गुस्सा बच्चे न देखें। उनका गुस्सा देखकर बच्चों को लगता है कि आप गुस्सा करते हैं तो मैं उनसे सवा गुना गुस्सा करूँ। जब आप गुस्सा करना बंद कर दोगे, तो (उनका) अपने आप बंद हो जाएगा।
  • बच्चों को समझाने के लिए गुस्सा होने और सत्ता का उपयोग करने के बजाय तार्किक कारणों का उपयोग करें। दबाव डालने से उसका परिणाम तुरंत मिल जाएगा, लेकिन थोड़े समय बाद वह आपसे बहस करना शुरू कर देगें। मन बातचीत करने से खिलता है, डराने से नहीं।
  • बच्चों के साथ दबाव या आग्रह पूर्वक बात न करें। जिस तरह आपको सत्ता का रोब जमाने वाले मैनेजर या सहकर्मी पसंद नहीं उसी तरह उन्हें भी पसंद नहीं। यदि बच्चों के साथ बात करते समय आपके चेहरे पर नकारात्मक भाव होंगे तो प्रतिक्रिया भी नकारात्मक ही मिलेगी।
  • अगर वे कुछ गलत करते हैं तो उनसे थोड़े शब्दों में बात करें, ‘ऐसा व्यवहार हमारे परिवार को शोभा नहीं देता।’ या ‘इस बारे में विचार करना, क्या आपको ऐसा करना उचित लगता है ?’ या ‘जो अभी-अभी हुआ वह आपको पसंद आता है।’ फिर प्रतिक्षा करें और उसे जवाब ढूँढ़ने दें। हमेशा शांति से मीठे शब्दों में बात करें कटु वचन न बोलें। थोड़े शब्दों में कहें लेकिन आहिस्ता से समझकर कहें। यह माता-पिता और बच्चों के बीच असरकारक वार्तालाप की चाबी है।
  • बच्चे चीजों को पहचानने और समझने में सक्षम होते हैं। जब वे कुछ गलत करते हैं तो उन्हें तुरंत ही पता चल जाता है। परन्तु जब आप उनकी गल्तियाँ निकालने लगते हैं तो उनका विरोध होता है और वे क्रोधी हो जाते हैं।
  • बच्चों के साथ प्रभावी ढंग से बात करने का उचित तरिका यह है कि आप उन्हें अपने मनोभावों को खुल कर व्यक्त करने दें। उनका भयभीत होना, दुखी होना, उलझन में होना ऐसा तो चलता ही रहता है। मनोभाव कुछ समय के लिए ही होते हैं। छोटी-छोटी बातों से शुरुआत करें जैसे कि वह कहे कि ‘आज मेरा मित्र मुझे चिढ़ा रहा था’ तब तुरंत निर्णय देने की जल्दी न करें कि वह गलत है या उसका मित्र गलत है। ऐसी कोई सलाह भी न दें जैसे कि ‘लोग उसी को चिढ़ाते हैं जो चिढ़ता है’ सिर्फ ऐसा दुखी चेहरा बनाकर नाटक करना कि ‘अरे बेटा वे ऐसा करते हैं!’ अथवा शांति से प्रश्न पूछकर परिस्थिति को विस्तार से जानने का प्रयत्न करें। कोई समाधान या निर्णय देने से बचें, उसे अपने आप ढूँढ़ने दें। उसे एक आत्मविश्वास से भरपूर व्यक्ति बनने में मदद करें।
  • उनके व्यवहार में भूल निकालना बंद करें। इससे स्थिति सुधरने की बजाय और बिगड़ेगी- शब्द व्यक्ति के दिमाग में स्पंदन पैदा करते हैं जिससे चीज़े गतिशील हो जाती है। यह सब वैज्ञानिक है ‘तुम काम के हो’ की तुलना में ‘तुम किसी काम के नहीं’, ये शब्द चालीस गुना अधिक नुकसान करते हैं। इसलिए हमेशा सकारात्मक और उत्साहवर्धक शब्द बोलिए ‘तुम बहुत आलसी हो’ कहने के बदले आप ऐसा भी कह सकते हैं कि ‘तुम्हें पता है जब तुम कुछ काम करते रहते हो तो बहुत खुश लगते हो।’ आपके द्वारा बोले गए शब्द जीवन भर के लिए उनके दिमाग में मान्यता के रूप में बैठ जाते है। इसलिए जब भी बच्चों के साथ बात करनी हो तो पॉज़िटिव ही बोलें।
  • किसी तीसरे व्यक्ति के सामने या उनके मित्रों के सामने अपने बच्चों से सम्मान पूर्वक बात करें।
  • बच्चे काँच की तरह होते हैं उन्हें सावधानी से संभालें। वे बाहर से तो ठीक लगते हैं पर अंदर से टूट जाते हैं।
  • डाँटने में हर्ज नहीं है। लेकिन खुद डाँटते हो इसलिए आपका मुहँ बिगड़ जाता है, इसलिए जिम्मेदारी है। आपका मुँह बिगड़े नहीं ऐसे डाँटो, मुँह अच्छा रखकर डाँटो, खूब डाँटो। बच्चों के साथ बात करने की यह एक सरल चाबी है। आपका मुँह बिगड़ जाए तो इसका मतलब यह है कि आपका जो डाँटना है वह आप अहंकार करके डाँटते हो। नाटक की तरह ऊपर-ऊपर से डाँटना चाहिए।
  • सच्चे प्रेम में कोई अपेक्षा नहीं होती है। उसमें कोई दोषित नहीं दिखता, अपेक्षा नहीं होती है और सच्चा प्रेम कभी भी कम ज्यादा नहीं होता है। आपको आपके घर का वातावरण ऐसा रखना चाहिए कि आपका प्रेम देखकर बच्चों को आपसे दूर जाना अच्छा नहीं लगे। प्रेम में गुस्से से भी अधिक शक्ति होती है। जगत प्रेम से ही सुधर सकता है। इसके अलावा दूसरा कोई उपाय नहीं है।

वाणी कैसी होनी चाहिए?

वाणी नीचे बताए गए चार गुणोंवाली हो तो ही असरकारक होती है।

  • सत्य होनी चाहिए।
  • प्रिय होनी चाहिए-मधुर शब्दों से युक्त होनी चाहिए। हम जो बोलते हैं वो सामने वाले व्यक्ति को स्वीकार होना चाहिए।
  • वह दूसरों के हित में होनी चाहिए। अपने स्वार्थ के लिए नहीं बोलना चाहिए।
  • मित (कम शब्दों वाली) होनी चाहिए। हमें इतना अधिक नहीं बोलना चाहिए कि सामने वाला व्यक्ति परेशान हो जाए।

किसी भी आग्रह, अपेक्षा और पूर्वाग्रह के बिना बात करें

बच्चों के साथ प्रभावी ढंग से बात किस तरह करें यह बहुत महत्वपूर्ण होता है। माता-पिता को बच्चों से ‘यह करो’ या ‘वह करो’ इस तरह का आग्रह नहीं रखना चाहिए। यदि आप आग्रह करते हैं तो भी उनसे यह अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए कि वे आपकी बात मानेंगे। वे जो भी करें उसे स्वीकार करने के लिए आपको तैयार रहना चाहिए। बच्चों के साथ आग्रह करने से अंत में वे आपके खिलाफ हो जाएंगे। ऐसा इसलिए कि जब आप आग्रह करते हैं, तो उसके पीछे आपका अहंकार काम करता है। पहले आपका अहंकार खड़ा होता है और वह बच्चे के अहंकार को छेड़ता है, इसलिए स्थिति तनावपूर्ण हो जाती है।

इस तरह बात करें कि उसका अहंकार खड़ा न हो। बच्चों को बातें समझानी चाहिए; उनकी समझ और जीवन के प्रति दृष्टिकोण को बदलने का प्रयास करना चाहिए। अपने अहंकार को खत्म करें; किसी भी प्रकार का पूर्वाग्रह नहीं रखें, और उसे प्रेम पूर्वक समझाएँ। पूर्वाग्रह का अर्थ है कि यदि कल आपने अपने बेटे को डाँटा हैं, तो वह बात आप अपने मन में बिठा देते हैं कि ‘वह वास्तव में ऐसा ही है’, और आप फिर से उसे डाँटते हो। इसलिए उससे जहर फैलता है। इसलिए आग्रह के बिना, अपेक्षा के बिना, और पूर्वाग्रह के बिना बच्चों के साथ बात करें । यह उनसे बात करने की प्राथमिक शर्त है।

जीवन के सिद्धांत

यदि व्यवहारिक जीवन में कुछ सिद्धांत अपना लिए गए हों तो किसी के साथ कोई भी समस्या नहीं रहेगी। सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत यह है कि, घर में या बाहर छोटी-छोटी बातों के लिए किसी से कुछ नहीं कहना चाहिए । केवल कुछ खास महत्वपूर्ण विषयों पर ही अपना मत व्यक्त करना चाहिए और ज़रूरी होने पर भी दोहराना नहीं चाहिए।

कुछ महत्वपूर्ण बातें जैसे- बच्चा मांसाहार करता हो, शराब पीता हो, किसी चक्कर में पड़ा हो या वह पढ़ाई न करता हो, पर आपका ध्यान देना ज़रूरी है। बाकी बातें जैसे कि-वह कार का ऐक्सिडन्ट करें, व्यापार में नुकसान कर के आए; कुछ भूल जाए, आदि सामान्य बातें हैं। माता-पिता को शांत रहकर परिस्थिति को प्रेम और समभाव से सुलझाना चाहिए। यदि आप इन बातों को स्वीकार कर लोगे तो बच्चे महत्वपूर्ण परिस्थितियों में आपकी बात अवश्य सुनेंगे। छोटी-छोटी बातों पर टोकने से आपके शब्दों का महत्व नहीं रह जाएगा। माता-पिता का व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली होना चाहिए कि सिर्फ आपकी उपस्थिति से ही उनका मन परिवर्तन हो जाए और कुछ कहने की आवश्यकता न रहे।

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