Related Questions

क्या मुझे तलाक लेना चाहिए?

वर्तमान समय में तलाक लेने का प्रचलन बढ़ गया है। इस संदर्भ में आपको भी एक बार तो ऐसा विचार आता ही होगा कि, ‘क्या मुझे तलाक लेना चाहिए?’ “तलाक” क्या मन की शांति फिर से प्राप्त करने की कुंजी है ? सच तो यह है कि जब पति-पत्नी एक घंटे के लिए भी एक-दूसरे से लड़ते हैं, तो वे तलाक लेने के बारे में सोचने लगते हैं। समय के साथ जैसे-जैसे घर्षण बढ़ते जाते हैं वैसे-वैसे तलाक लेने का विचार और दृढ़ होने लगता है जिसके कारण यह एक बीज से प्रस्फुटित होकर बड़ा वृक्ष बन जाता है।

सही समझ 

यदि आपके जीवनसाथी की वजह से संबंधों में दरारें पड़ने लगती है तो संबंधों को जोड़ने एवं सुदृढ़ करने की जिम्मेदारी आपकी है। तभी आपका शादीशुदा जीवन टिका रहेगा वरना टूट जाएगा। इसी बात को परम पूज्य दादाश्री विस्तार से समझाते हैः- 

दादाश्री : कहीं भी मेल नहीं खाता हो, तब अलग हो जाना अच्छा। एडजस्टेबल हो ही नहीं तो अलग हो जाना बेहतर। वर्ना हम तो एक ही बात कहते हैं कि ‘एडजस्ट एवरीव्हेर’ दूसरे दो को कहकर गुणन करने मत जाना कि, ‘ऐसा है और वैसा है।’ 

प्रश्नकर्ता : इस अमरीका में जो डायवोर्स लेते हैं, वह खराब कहलाएगा या आपस में बनती न हो और वे लोग डायवोर्स लेते हैं, वह? 

दादाश्री : डायवोर्स लेने का अर्थ ही क्या है लेकिन! ये क्या कप-प्लेट हैं? कप-प्लेट अलग-अलग नहीं बाँटते। उनका डायवोर्स नहीं करते, तो इन मनुष्यों का तो डायवोर्स करते होंगे? जहाँ एक पत्नीव्रत और एक पतिव्रत के नियम थे। एक पत्नी के अलावा दूसरी स्त्री को देखना मत, ऐसा कहते थे। ऐसे विचार थे। वहाँ डायवोर्स के विचार शोभा देते हैं? डायवोर्स माने झूठे बर्तन बदलना। भोजन के बाद झूठे बर्तन दूसरे को देना फिर, फिर तीसरे को देना। निरे झूठे बर्तन बदलते रहना, उसका नाम डायवोर्स। पसंद है तुझे डायवोर्स? 

दूसरों को होने वाले अनुभवों को देखकर सीखें 

शादीशुदा जीवन को किस तरह टिकाए रखें वह सीखना हो तो, उत्तम उपाय है उन शादीशुदा लोगों के अनुभव को सुनना जो लंबे समय से साथ निभा रहें हैं। यहाँ नीचे अस्सी साल की एक शादीशुदा महीला का अनुभव दर्शाया गया है। उनकी शादी लंबे समय तक किस तरह टिक सकी, आइए जानते हैं... 

हमारे संस्कार हैं ये तो। लड़ते-लड़ते दोनों को अस्सी साल हो जाएँ, फिर भी मरने के बाद तेरहवें के दिन शैय्यादान करते हैं। शैय्यादान में चाचा को यह भाता था और यह पसंद था, चाची सब बम्बई से मँगाकर रखती हैं। तब एक लड़का था न, वह अस्सी साल की चाची से कहता है, ‘माँजी, चाचा ने तो आपको छह महीने पहले गिरा दिया था। उस वक्त तो आप उल्टा बोल रही थीं चाचा के बारे में।’ ‘फिर भी, ऐसे पति नहीं मिलेंगे’ कहने लगी। ऐसा कहा उन बुज़ुर्ग महिला ने। सारी ज़िंदगी के अनुभव में से ढूँढ निकालती हैं कि ‘पर वे दिल के बहुत अच्छे थे। यह प्रकृति टेढ़ी थी पर दिल के...’

लोग देखें, ऐसा हमारा जीवन होना चाहिए। हम स्त्री को निबाह लें और स्त्री हमें निबाहे, ऐसा करते करते अस्सी साल तक चलता है।

परम पूज्य दादाश्री ने कहा है कि, तलाक़ लेनेवालों का मैं घंटेभर में मेल करा दूँ फिर से! तलाक़ लेना हो, उसे मेरे पास लाओ तो मैं एक ही घंटे में ठीक कर दूँ। फिर वे दोनों साथ रहेंगे। डर मात्र नासमझी का है। कई अलग हो चुके जोड़ों का ठीक हो गया है। आज भी ऐसा होना संभव है। पूज्य दीपक भाई से मिलने के बाद कई दंपति सुखी जीवन जी रहें हैं। आप भी उनमें से एक हो सकते हैं।

×
Share on