अक्रम विज्ञान, एक ऐसा आध्यात्मिक विज्ञान है जो व्यवहार में उपयोगी है और मोक्ष प्राप्ति के लिए एक ‘शार्टकट’ रास्ता है।
अधिक पढ़ें20 मई |
19 मई | to | 21 मई |
दादा भगवान फाउन्डेशन प्रचार करता हैं, अक्रम विज्ञान के आध्यात्मिक विज्ञान का – आत्मसाक्षात्कार के विज्ञान का। जो परम पूज्य दादा भगवान द्वारा बताया गया है।
अधिक पढ़ेंअहमदाबाद से २० की.मी. की दूरी पर सीमंधर सिटी, एक आध्यात्मिक प्रगति की जगह है| जो "एक स्वच्छ, हरा और पवित्र शहर" जाना जाता है|
अधिक पढ़ेंअक्रम विज्ञानी, परम पूज्य दादा भगवान, द्वारा प्रेरित एक अनोखा निष्पक्षपाति त्रिमंदिर।
अधिक पढ़ेंप्रश्नकर्ता: डायवोर्स, ऐसे कैसे संयोग होने पर डायवोर्स लेना चाहिए?
दादाश्री: यह डायवोर्स तो अभी निकले हैं। पहले डायवोर्स थे ही कहाँ?
प्रश्नकर्ता: अभी तो हो रहे हैं न? तो किन संयोगों में वह सब करना चाहिए?
दादाश्री: कहीं भी मेल नहीं खाता हो, तब अलग हो जाना अच्छा। एडजस्टेबल हो ही नहीं तो अलग हो जाना बेहतर। वर्ना हम तो एक ही बात कहते हैं कि ‘एडजस्ट एवरीव्हेर’ दूसरे दो को कहकर गुणन करने मत जाना कि, ‘ऐसा है और वैसा है।’
प्रश्नकर्ता: इस अमरीका में जो डायवोर्स लेते हैं, वह खराब कहलाएगा या आपस में बनती न हो और वे लोग डायवोर्स लेते हैं, वह?
दादाश्री: डायवोर्स लेने का अर्थ ही क्या है लेकिन! ये क्या कप-प्लेट हैं? कप-प्लेट अलग-अलग नहीं बाँटते। उनका डायवोर्स नहीं करते, तो इन मनुष्यों का तो डायवोर्स करते होंगे? एक पत्नी के अलावा दूसरी स्त्री को देखना मत, ऐसा कहते थे। ऐसे विचार थे। वहाँ डायवोर्स के विचार शोभा देते हैं? डायवोर्स माने झूठे बर्तन बदलना। भोजन के बाद झूठे बर्तन दूसरे को देना फिर, फिर तीसरे को देना। निरे झूठे बर्तन बदलते रहना, उसका नाम डायवोर्स। पसंद है तुझे डायवोर्स?
कुत्ते, जानवर सभी डायवोर्सवाले हैं और ये फिर मनुष्य भी वही करें तो फिर ़फ़र्क ही क्या रहा? मनुष्य बीस्ट (जानवर) जैसा ही हो गया। आपने हिन्दुस्तान में तो एक शादी के बाद दूसरी शादी नहीं करते थे। वे तो, यदि पत्नी की मृत्यु हो जाए तो शादी भी नहीं करते थे,ऐसे लोग थे! कैसे पवित्र लोग जन्मे थे!
अरे, तला़क लेनेवालों का मैं घंटेभर में मेल करा दूँ फिर से! तला़क लेना हो, उसे मेरे पास लाओ तो मैं एक ही घंटे में ठीक कर दूँ। फिर वे दोनों साथ रहेंगे। डर मात्र नासमझी का है। कई अलग हो चुके जोड़ों का ठीक हो गया है।
हमारे संस्कार हैं ये तो। लड़ते-लड़ते दोनों को अस्सी साल हो जाएँ, फिर भी मरने के बाद तेरहवें के दिन शैय्यादान करते हैं। शैय्यादान में चाचा को यह भाता था और यह पसंद था, चाची सब बम्बई से मँगाकर रखती हैं। तब एक लड़का था न, वह अस्सी साल की चाची से कहता है, ‘माँजी, चाचा ने तो आपको छह महीने पहले गिरा दिया था। उस वक्त तो आप उल्टा बोल रही थीं चाचा के बारे में।’ ‘फिर भी, ऐसे पति नहीं मिलेंगे’ कहने लगी। ऐसा कहा उन बुज़ुर्ग महिला ने। सारी ज़िंदगी के अनुभव में से ढूँढ निकालती हैं कि ‘पर वे दिल के बहुत अच्छे थे। यह प्रकृति टेढ़ी थी पर दिल के...’
लोग देखें, ऐसा हमारा जीवन होना चाहिए। हम स्त्री को निबाह लें और स्त्री हमें निबाहे, ऐसा करते करते अस्सी साल तक चलता है।
Book Name: पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार (Page #84 Paragraph #3 to #8 & Page #85 Paragraph #1, #2, #3, #4).
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