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मुझे अपने बिज़नेस को लेकर बहुत चिंता होती है। यह चिंता कैसे बंद हो ?

प्रश्नकर्ता : व्यापार की चिंता होती है, बहुत अड़चनें आती हैं।

दादाश्री : चिंता होने लगे कि समझना कि कार्य बिगड़नेवाला है। ज़्यादा चिंता नहीं हो तो समझना कि कार्य बिगड़नेवाला नहीं है। चिंता कार्य के लिए अवरोधक है। चिंता से तो व्यापार की मौत आती है। जिसमें चढ़ाव-उतार हो उसका नाम ही व्यापार, पूरण-गलन है वह। पूरण हुआ उसका गलन हुए बगैर रहता ही नहीं। इस पूरण-गलन में अपनी कोई मिल्कियत नहीं है और जो अपनी मिल्कियत है, उसमें से कुछ भी पूरण-गलन होता नहीं है, ऐसा साफ व्यवहार है। यह आपके घर में आपके बीवी-बच्चे सभी पार्टनर्स हैं न?

प्रश्नकर्ता : सुख-दुःख भुगतने में भी हैं।

दादाश्री : आप अपने बीवी-बच्चों के अभिभावक कहलाते हो। अकेले अभिभावक को किसलिए चिंता करनी? और घरवाले तो उल्टा कहते हैं कि आप हमारी चिंता मत करना।

प्रश्नकर्ता : चिंता का स्वरूप क्या है? जन्म हुआ तब तो थी नहीं और आई कहाँ से?

दादाश्री : जैसे-जैसे बुद्धि बढ़ती है वैसे-वैसे संताप बढ़ता है। जन्म होता है तब बुद्धि होती है? व्यापार के लिए सोचने की ज़रूरत है। पर उससे आगे गए तो बिगड़ जाता है। व्यापार के बारे में दस-पंद्रह मिनट सोचना होता है, फिर उससे आगे जाओ और विचारों का चक्कर चलने लगे, वह नोर्मेलिटी से बाहर गया कहलाता है, तब उसे छोड़ देना। व्यापार के विचार तो आते हैं, पर उन विचारों में तन्मयाकार होकर वे विचार लम्बे चलें तो फिर उसका ध्यान उत्पन्न होता है और उससे चिंता होती है। वह बहुत नुकसान करती है।

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