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बच्चों को कैसे सँभाले? बच्चें वादविवाद क्यों करते हैं?

प्रश्नकर्ता : यहाँ के बच्चे बहुत  बहस करते हैं, आर्ग्युमेन्ट बहुत करते हैं। यह आप क्या लेक्चर दे रहो हो, कहते हैं?

दादाश्री : बहस बहुत करते हैं। फिर भी प्रेम से सिखाओगे न तो बहस कम होती जाएगी। यह बहस आपका रिएक्शन है। आप अभी तक उन्हें दबाते रहे हैं न। वह उसके दिमा़ग में से जाता नहीं है, मिटता ही नहीं। इसलिए फिर वह बहस करता है। मेरे साथ एक भी बच्चा बहस नहीं करता। क्योंकि मैं सच्चे प्रेम से यह आप सबके साथ बातें कर रहा हूँ।

 हमारी आवाज़ सत्तावाली नहीं होती। यानी कि सत्ता नहीं होनी चाहिए। बेटे से आप कहो न, तो सत्तावाली आवाज़ नहीं होनी चाहिए।

इसलिए आप थोड़ा प्रयोग मेरे कहे अनुसार करो न।

प्रश्नकर्ता : क्या करें?

दादाश्री : प्रेम से बुलाओ न।

प्रश्नकर्ता : वह जानता है कि मेरा उस पर प्रेम है।

दादाश्री : वैसा प्रेम काम का नहीं है। क्योंकि आप बोलते हो उस घड़ी फिर कलेक्टर की तरह बोलते हो। 'आप ऐसा करो, आपमें अक्कल नहीं है, ऐसा-वैसा।' ऐसा भी कहते हो न?

हमेशा प्रेम से ही दुनिया सुधरती है। इसके सिवाय दूसरा कोई उपाय ही नहीं है उसके लिए। यदि धाक से सुधरता हो न तो यह गवर्नमेन्ट डेमोक्रेसी.... सरकार लोकतंत्र हटा दे और जो कोई गुनाह करे, उसे जेल में डालकर उसे फाँसी दे दे।

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