अपने सच्चे स्वरुप को जानने के लिए कि ‘मैं कौन हूँ’, क्या सचमुच हमें ध्यान, कठोर तप या संसार त्याग करने की ज़रूरत है? जिस सुख का खज़ाना हमारे भीतर ही है, उसे जानने के लिए क्यों हम कोई त्याग करें? हमें तो बस अपने आप को पहचानना है। आज तक लाखों लोगों ने इस परम सत्य को जानने के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया। लेकिन क्या वास्तव में इसकी ज़रूरत है? इतने वर्षों में अनेक बार ज्ञानियों ने, साधुओं ने इस सवाल को अपनी तरह से समझाया है कि ‘मैं कौन हूँ’। लेकिन वे सारे गूढ़ अनुभव उन ज्ञानियों के हृदय में ही रह गए। फिर भी ऐसी बहुत ही कम महान विभूतियाँ हैं, जो अपना यह ज्ञान दूसरों को भी दे सकें। आत्मसाक्षात्कार पाने की प्रक्रिया बहुत ही सरल है लेकिन उसके लिए ज़रूरत है सही मार्गदर्शन की।  

खुद के वास्तविक स्वरुप (आत्मा) की खोज को आरंभ करने के लिए आइये देखते है दादाश्री और जिज्ञासु के बीच में हुए एक वार्तालाप को और जानते हैं कि वास्तव में क्या हमारा क्या है और क्या नहीं...

 

इसे समझने की शुरुआत करते हैं ‘मैं’ और ‘मेरा’ को अलग रखकर...

Know Thy self
Know Thy self

दादाश्री: क्या इस वक्त तुम खुद को ‘मेरा’ से पहचानते हो? क्या ‘मैं’ अकेला है या ‘मेरा’ के साथ है?

प्रश्नकर्ता: ‘मेरा’ हमेशा ही रहता है।

दादाश्री: ऐसी कौनसी चीज़ें हैं जो ‘मेरा’ में आती आती हैं?

प्रश्नकर्ता: मेरा घर और मेरे घर की सारी चीज़ें।

दादाश्री: क्या वे सभी चीज़ें आपकी हैं? पत्नी किसकी है?

प्रश्नकर्ता: वह भी मेरी है।

दादाश्री: और ये बच्चे?

प्रश्नकर्ता: वे भी मेरे हैं।

दादाश्री: और यह घड़ी?

प्रश्नकर्ता: वह भी मेरी है।

दादाश्री: और ये हाथ, किसके हैं ये हाथ?

प्रश्नकर्ता: ये भी मेरे हैं।

 

दादाश्री: अब आप कहेंगें “मेरा सिर, मेरा शरीर, मेरे पैर, मेरे कान, मेरी आँखें।” ये सभी शरीर के अंग ‘मेरा’ में आते हैं। तो “मेरा” कहनेवाला यह व्यक्ति कौन है? कौन है जो ऐसा कह रहा है कि “ये सारी चीज़ें मेरी हैं?” क्या आपने कभी इस बारे में सोचा है? जब आप कहते हो कि मेरा नाम ‘चंदूलाल’ है (चंदूलाल की जगह पर अपना नाम रखें) और फिर बाद में आप कहेंगें, “मैं चंदूलाल हूँ”, क्या आपको इसमें विरोधाभास नहीं लगता?

प्रश्नकर्ता: हाँ, लगता है।

दादाश्री: अभी आप ‘चंदूलाल’ है। इसमें चंदूलाल के भीतर ही दोनों हैं, “मैं” और “मेरा”। ये रेल की दो पटरियों की तरह है, “मैं” और “मेरा”; वैसे तो ये हमेशा साथ ही चलते हैं फिर भी अलग ही हैं। वे हमेशा समानांतर है और कभी एक नहीं हुए हैं। इसके बावजूद आप उसे एक मानते हैं। इसकी वजह है, ‘अज्ञानता’ और अपनी सही पहचान से बेखबर रहना। इस बात को समझ लेने के बाद, “मेरा” को अलग करो। वे सभी चीज़ें जो “मेरा” में आती हैं, उन्हें अलग रखो। उदाहरण के तौर पर, “मेरा हृदय”, हृदय को एक तरफ रख दो (और कौन सी चीज़ें हैं जो हमें शरीर से अलग रखनी हैं?)

प्रश्नकर्ता: पैर और सभी ज्ञानेन्द्रियाँ।

दादाश्री: हाँ, पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ (धारणा के अंगों) और पाँच कर्मेंन्द्रियाँ (कार्रवाई के अंगों) और बाकी सबकुछ। इसके अलावा, आप और क्या कहते हैं, “मेरा मन” या “मैं मन हूँ?”

प्रश्नकर्ता: हम “मेरा मन” कहते हैं।  

दादाश्री: क्या आप यह भी नहीं कहते, “मेरी बुद्धिमत्ता?”

प्रश्नकर्ता: हाँ।

 

Know Thy self
Know Thy self

दादाश्री: और “मेरा चित्त”?

प्रश्नकर्ता: हाँ।

दादाश्री: आप क्या कहते हैं, ‘मेरा अहंकार’, या ‘मैं अहंकार हूँ’?

प्रश्नकर्ता: मेरा अहंकार|

दादाश्री: इसका मतलब आप अहंकार से भी अलग हो। “मेरा अहंकार” कहने से आप अहंकार को भी जुदा रख सकते हैं, लेकिन आप उन सभी चीज़ों से अवगत नहीं हैं जो “मेरा” में आती हैं और इसी वजह से आप पूरी तरह से अलग नहीं रख पाते। आपकी जागृति सीमित हैं। आप केवल स्थूल भाग से ही अवगत हैं| इनके बाद आता है सूक्ष्म भाग। इस सूक्ष्म भाग को भी अलग रखना है, इसके बाद और दो लेवल हैं, सूक्ष्मतर और सूक्ष्मतम, इनमें से भी निकलने की ज़रूरत है। केवल ‘ज्ञानीपुरुष’ ही इन अमूर्त स्तरों पर, जुदापना रखने में सफल हुए हैं। क्या इन दोनों को अलग रखना संभव है? आप अगर “मैं” में से हर एक कदम और हर स्तर पर “मेरा” को हटाते जाओगे, और जो सभी चीज़ें “मेरा” में आती हैं उन्हें अलग रखते जाओगे तो क्या बचेगा?

प्रश्नकर्ता: “मैं”

दादाश्री: वह “मैं” ही निश्चित रूप से ‘आप’ हो। और इसी “मैं” (खुद) का, आपको अनुभव करना है।

 

प्रश्नकर्ता: इस जुदापन के बाद क्या मुझे यह समझना चाहिए कि जो कुछ भी बचा है, वही मैं खुद हूँ? क्या वही आत्मा है?

दादाश्री: हाँ, विभाजन के बाद जो बचता है, वही आपका सच्चा स्वरुप है। “मैं” ही सच्चा स्वरुप है। क्या आपको इस बारे में अधिक जाँच पड़ताल नहीं करनी चाहिए? क्या “मैं” और “मेरा” का विभाजन सरल नहीं हैं?

प्रश्नकर्ता: यह सरल लग रहा है, लेकिन हम यह विभाजन सूक्ष्मतर और सूक्ष्मतम स्तर पर कैसे करेंगे? ज्ञानी के बिना यह संभव नहीं है, है ना?

दादाश्री: हाँ। ज्ञानीपुरुष आपके लिए यही करते हैं। इसी वजह से मैं कहता हूँ कि “ज्ञानी के सेपरेटर” से “मैं” और “मेरा” का विभाजन करो। सभी शास्त्रों के शिक्षक इस सेपरेटर को क्या कहते हैं?

वे इसे “भेद ज्ञान” कहते हैं। यह विभाजन का विज्ञान (ज्ञान) है। इस विज्ञान के बिना आप “मेरा” को कैसे निकालेंगे? आप के पास यह यथार्थ ज्ञान नहीं है कि “मैं” में क्या-क्या आता है और “मेरा” में क्या-क्या आता है। भेद ज्ञान का मतलब है जो कुछ भी ‘मेरा’ है उससे, “मैं पूरी तरह से अलग हूँ”। सिर्फ ज्ञानीपुरुष के माध्यम से ही यह भेदज्ञान (विभाजन का विज्ञान) प्राप्त हो सकता है।

क्या आपको यह सरल नहीं लगता जब “मैं” और “मेरा” का विभाजन हो जाता है? क्या यह आत्मसाक्षात्कार का विज्ञान, इस तरह से सरल नहीं बन गया? नहीं तो, आजकल के लोग शास्त्र पढ़ते–पढ़ते थक जाएँगे लेकिन फिर भी आत्मसाक्षात्कार प्राप्त नहीं हो सकेगा।

 

“द वर्ल्ड इज द पज़ल इट सेल्फ। गोड हेज़ नोट क्रियेटेड दिस पज़ल। देयर आर टू व्यूपॉइंट टू सोल्व दिस पज़ल, वन इस रिलेटिव व्यूपॉइंट एंड वन रियल व्यूपॉइंट| रियल इस परमानेंट, रिलेटिव इस टेम्पररी| ऑल दीज़ रिलेटिव्ज़ आर टेम्पररी एडजस्टमेंट्स एंड यू आर परमानेंट|”

~परम पूज्य दादाश्री

 

close

ज्ञानविधि की माहिती

ज्ञान विधि क्या है? वह आत्मानुभूति की २ घंटे की प्रक्रिया हैं| वर्त्तमान में हमे जो ज्ञान है की मैं डॉक्टर हूँ/ पति हूँ/ बेटा हूँ, वह सब संसारिक ज्ञान है| ज्ञान विधि द्वारा हमे अब्सोलुट (पूर्ण) ज्ञान प्राप्त होता है|ज्ञान विधि के पश्चात हमारी सच्ची समझ हमे आनंदमय जीवन की ओर ले जाएगी|

play

 

जिस तरह सोने को दूसरे तत्वों से अलग करने के लिए किसी सुनार की ज़रूरत पड़ती है, उसी तरह व्यक्ति को अपने प्योर स्वरूप की प्राप्ति करवाने के लिए एक प्रकट पुरुष (प्रबुद्ध व्यक्ति) की ज़रूरत है। सच्ची आध्यात्मिकता, धर्म नहीं है; वह विज्ञान है। सिर्फ एक वैज्ञानिक की आवश्यकता है, जो इन दो तत्वों को, आत्मा और अनात्मा को, अलग कर सके हैं। इसलिए अगर किसी को यह आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना है तो उसे उस वैज्ञानिक या ज्ञानीपुरुष (प्रबुद्ध व्यक्ति) के पास जाना होगा। हज़ारों लोगों ने परम पूज्य दादाश्री से ‘भेद ज्ञान प्रयोग’ द्वारा आत्मा का अनुभव प्राप्त किया है। आज भी लोग पूज्य दीपकभाई से आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर रहे हैं। लाखों लोगों ने अपने सच्चे स्वरुप का अनुभव किया है और अपने आत्मा को जगाया है। इस प्रक्रिया का परिणाम, आत्मा (सच्चे स्वरुप) की निरंतर जागृति और संपूर्ण सुख एवं चिंता मुक्त जीवन है।

भेदविज्ञान, जिसे ‘आत्मसाक्षात्कार’ प्राप्ति की वैज्ञानिक प्रक्रिया या ‘ज्ञान विधि’ भी कहते हैं| इसके बारे में और अधिक जानने के लिए, क्लिक करें :

 

अक्रम विज्ञान सारे जगत में

विज्ञान और टेक्नोलोजी ने हमारे जीवन को आसान कर दिया है| वैसे ही दादा भगवान का आध्यात्मिक विज्ञान (अक्रम विज्ञान) हमे सभी दुखों से मुक्ति का अनुभव करवाता हैं| यह अक्रम विज्ञान हमे जीवन जीना सिखाता है| अक्रम विज्ञान को अधिक जाने और लोगों के अनुभव देखे इस विडियो द्वारा|

 

जिन्होंने इस ज्ञानविधि की प्रक्रिया में भाग लिया है, उनके अनुभवों को देखने के लिए, क्लिक करें :

दुनियाभर में जिन्होंने इस ज्ञानविधि की प्रक्रिया में भाग लिया है, उनके अनुभवों को पढ़ने के लिए, क्लिक करें :

आत्मसाक्षात्कार“ नामक किताब अवश्य  डाउनलोड करें|

भविष्य में होने वाले सत्संग कार्यक्रम और ज्ञानविधि के लिए, क्लिक करें :

अगर आप चाहते हैं कि भविष्य में होनेवाले सत्संग कार्यक्रम और ज्ञानविधि की सूचनाएँ आपको मिलती रहें, तो फॉर्म भरने के लिए कृपया यहाँ क्लिक करें ताकि हम आपको आपका नज़दीकी सुविधाजनक स्थल सूचित कर पाएँ।    

अगर आपको कोई प्रश्न हैं या अपनी समस्याओं के समाधान चाहिए, तो कृपया हमें ई-मेल करें  [email protected]  पर और हम आपको जल्द से जल्द संपर्क करेंगें।

 

×
Share on